saakaar

पड़ाव में सांत्वना के नाम पर चंद कागज के पत्ते उन्हें थमा दिए जायेंगे.हम मजबूरी रोशन लाल की भी समझते है की उन्हें आर्थिक बोझ के चलते मुआवजे की राशी स्वीकार करनी पड़ेगी लकिन क्या यह राशी पर्याप्त है की पिछले 14 साल उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में उठाया क़र्ज़ इस से वापिस दे पाएंगे.आज सरकारे अपने नेताओं को घुमने फिरने के लिए मुफ्त में हवाई यात्रायें करवा रही है लकिन आम आदमीं के चींक उन नेताओं तक नहीं पहुँचती जिन्हें दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं है.